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कैसे बनते हैं नक्सली और कहाँ से मिलता है मदद जानिए

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नक्सलवाद को जड़ से ख़त्म करने के लिए जंगलों की ख़ाक छानने को भेजी गयी सुरक्षा बलों की टुकड़ियों से नक्सली  पर सीधा हमला करना दूरगामी समाधान नहीं होगा। इससे सुरक्षा बालों को नुक्सान ज्यादा होने की संभावना है। मेरे आंकलन के अनुसार ऐसा सीधा काम करने से सरकार को बचना चाहिए। 
ये कोई POK जैसी जगह नहीं है कि पूरा इलाका दुश्मन है, जो भी दिखे मार दो। उदाहरण के लिए बस्तर डिवीज़न के सुकमा, कांकेर, दंतेवाड़ा, नारायणपुर और बस्तर या फिर गढ़चिरौली, गोंदिया या करीमनगर में 12 -14 वर्ष के बच्चे जो स्कूल यूनिफार्म पहन के जा रहे होते हैं, वो साधारण बच्चे भी हो सकते हैं या trained नक्सली।
बस्तर प्रभाग - के गाँवों में जाने पर दिखेगा की वहां सिर्फ बूढ़े आदमी, बूढी औरतें, कुछ अन्य महिलाएँ, और बच्चे ही हैं। लगभग सारे बड़े बच्चे और जवान लड़के - लड़कियां गायब रहते हैं।  दंडकारण्य में घुसकर अंदर एक पूरे जनमानस पर हमला करना कहाँ तक सही रहेगा, ये सरकार को तय करना है। या फिर हमारे राष्ट्रवाद  मित्रों को भी सोचना है, जो इस समय नक्सलवाद की कड़ियाँ हैं।

  1.  वो जो नक्सली नेता और कमांडर जो जंगलों में बैठे हैं। ये वो हैं जो जंगलों के अन्दर सञ्चालन करते हैं।
  2.  गांववाले जो अंदर पत्ते बीनने, लकड़ी बीनने, शराब बनाने और मवेशी पालने का काम करते हैं।
  3.  गाँव छोड़े वो लड़के लड़कियां जो लड़ाई करते हैं, कमाण्डरों द्वारा बनाए योजना के अनुसार हमलों को अंजाम देते हैं। 
  4.  खुफिया तंत्र - इनका एक ख़ुफ़िया तंत्र है जो की उधर वही गाँव वाले हैं। यही गाँव वाले सुरक्षा बालों के मूवमेंट की जानकारी से लेकर सामान को इधर से उधर पहुंचाते हैं। शहरों से संचालित ख़ुफ़िया तंत्र भी है जो अब सोशल मीडिया पे कविता या लेख के रूप में सन्देश भेजता है। और अक्सर जानकारिया वर्बल इकठ्ठा की जाती है जिससे सरकारी एजेंसियां पकड़ न सकें। इसके लिए बाकायदा टूर प्रोग्राम बनाया जाता है। सम्मेलनों के बहाने जाया जाता है और सन्देश का आदान प्रदान होता है।
  5.  पैसा, रसद, दवाइया, हथियारों और गोली बारूद का इंतज़ाम करने वाले।
  6.  जंगल में बैठे नेता और कमांडर को आज्ञा देने और पूरे माओवाद (नक्सलवाद) को संचालित करने वाले, ये लोग दिल्ली, रायपुर, कलकत्ता, हैदराबाद, मुंबई , नागपुर, पटना, लखनऊ या किसी भी अन्य शहर में बैठे लोग हैं। ये ही पैसों का ईन्तेज़ाम करते हैं। मतलब पूरे नेक्सस को चलाते हैं।
  7.  propaganda तन्त्र - मीडिया तन्त्र।
  8.  इनके साथ मिले हुए सरकारी तन्त्र में बैठे लोग, कोई वो चपरासी से लेकर न्यायलय में हो सकता है। 
अब सबसे पहले गांव वालों और लड़के लड़कियों के रोल को देखते हैं - ये बीच में पिसे लोग हैं और उन्होंने ये रास्ता चुना क्योंकि उनके पास कोई दूसरा रास्ता नहीं है। नक्सली कमाण्डर पूरे इलाके पर ध्यान रखते हैं। जैसे ही इनके बच्चे 8-10 साल के होते हैं ये उनको उठा ले जाते हैं। उनको पढ़ाते हैं - क्या पढ़ाते हैं ? कि भारत की सरकार और ये बाहर से आये लोग तुम्हारे दुश्मन हैं। उनको ये गोली चलाने, ग्रेनेड चलाने और लैंड माइन लगाने तक की ट्रेनिंग देते हैं। उनके रहने खाने का इंतज़ाम करते हैं। इस बीच गांव वालों को धमकाया जाता है कि हमारा काम करो वरना तुम्हारे लड़के को मार देंगे और उन लड़को को कहा जाता है कि तुम्हारा परिवार खतरे में है। कई बार नक्सली कमांडर के आदेश पर गाँव में लूट और घर जलाने का काम किया जाता है, जिसको सुरक्षा बालों द्वारा किया गया बोल के प्रचारित किया जाता है। गाँव वालों को और उन लड़को को तनख्वाह भी मिलती है 3000 तक और हमला करने वाले दिन 8000 से 10000 तक। मरने पर सुरक्षा बलों के खिलाफ जहर भरा जाता है। गाँव वाले इस तरह नक्सली कमाण्डर के हाथ के मोहरे बने होते हैं। 
नक्सली कमांडर जंगलों में ही इलाज आदि की व्यवस्था करते हैं। शहरों से नक्सली समर्थक डॉक्टर आते हैं और दवाइयां आदि दिया जाता है। कई बार हस्पताल ले जाना जरूरी हो तो इलाज के अभाव में मार दिया जाता है, और उसका दोष भी सरकार और सुरक्षा बलों के सर पर डाला जाता है। 
पैसे का श्रोत ::: भारत में इस समय कुल 90 के आस पास वामपन्थी पार्टियां है जो कि चुनाव आयोग में रजिस्टर्ड हैं। ये सिर्फ चंदा उगाही के लिए बनाई गयी है। इनका काम होता है विदेशों से मिले पैसों को चंदा दिखाना। ये लोग NGO भी चलाते हैं जिसको मिले पैसे टैक्स रहित होते हैं। जंगलों से तेंदू पत्ता, पान का पत्ता, गांजा चरस आदि की तस्करी, हथियारों की तस्करी, उद्योगपतियों - ठेकेदारों से जबरन उगाही आदि से कमाए सब पैसे राजनैतिक चंदे के रूप में दिखाया जाता है। इस धंधे का टर्नओवर 5000 करोड़ के आस पास या उससे ज्यादा बनता है। 
शहरों में बैठे इनके संचालक विदेशों से पैसा, NGO को ग्रांट, तस्करी के ग्राहक, हथियारों का इंतज़ाम, मेडिकल सहायता, कपड़े आदि का इंतज़ाम करते हैं। ये इनका सञ्चालन करते हैं। ये शहरों में बैठे सफेदपोश हैं, ये संसद में बैठे हैं, ये विश्वविद्यालयों में शिक्षक के रूप में बैठे हैं, ये रिसर्च विद्यार्थी के रूप में बैठे हैं, ये डॉक्टर के रूप में बैठे हैं, ये इंजीनियर के रूप में बैठे हैं, ये बड़े बड़े अफसर बन के भी बैठे हैं, और ये न्यायालौं में भी बैठे हैं। इनका काम मनी मैनेजमेंट हैं, इनका काम राजतंत्र की गुप्त सूचनाएँ जंगलों में पहुँचाना है। इनका धन और सत्ता लोलुपता इतनी है कि ये भारत के खिलाफ लड़ रहे आतंकी संगठनों से भी सांठ गाँठ किये हुए हैं। नरकीय नक्सली नेता किशनजी का सीधा सम्बन्ध लश्करे तैबा से था और उसका कहना था कि हम अपने मकसद के लिए किसी भी संगठन से मिलने को तैयार हैं। 
शहरों में बैठे इन सफेदपश लोगों ने इनको वैचारिक छत्रछाया भी दिया है, इन लोगों ने मानवाधिकार के कार्यकर्ता के रूप में भी इनको ढाल दिया है। इन लोगों को आप बड़े बड़े सम्मेलनों में स्टेज पर बोलते भी देखा होगा।
चारु मजूमदार और कानू सान्याल के द्वारा पश्चिम बंगाल से शुरू हुए नक्सलवाद आंदोलन को हथियार बंद आंदोलन बनाया जंगल संथाल ने। कांग्रेस सरकार की नाकामियों, भ्रष्ट शासन, चोर जैसे पुलिस व्यवस्था, पुलिस और सरकारी अधिकारीयों की पैसा कमाने की लोलुपता ने बस्तर, गढ़चिरौली और करीमनगर के जंगलों में, झारखंड के कोयला खदानों में, दामोदर वैली में, उड़ीसा के खनिज सम्पदा को खूब लूटा। ये लूट 1950 से ही बेहिसाब शुरू हो चुकी थी। उद्योगपतियों और नेताओं के साथ सांठ गाँठ करके वहां के सरकारी कर्मचारि आदिवासियों और गांववालों से उनका घर तक छीन रहे थे। उनके जमीन से निकले अनमोल रत्नों जैसे कोयला, हीरा, सोना, पत्ते, लकड़ी आदि को खूब लूटा। उनको इतना भी नहीं दिया कि वो ढंग से जीवन जी सकें। इस पर इस इलाके के आदिवासी प्रजातियां जब आपत्ति जताई तो उनको झूठे मुकदमों में फंसा के जेलों में बंद किया गया, पीटा गया और हत्या भी की गयी। इस सब को सहने के बाद नक्सलबाड़ी से उठे आंदोलन को बड़ी आसानी से जंगलों और पहाड़ों में समर्थन मिल गया। 
नक्सलवाद - माओवाद को नक्सलबाड़ी से दंडकारण्य पहुंचाने का काम किया चारु मजूमदार, कनु सान्याल और जंगल संथाल ने। इसको बस्तर इलाके से, गढ़चिरौली, करीमनगर, वारंगल, झारखंड के कोयला इलाके, उड़ीसा के खनिज इलाको में पहुंचाने वाले प्रमुख नस्कली नेता थे किशनजी, कप्पू देवराज, गणपति, बासवराज, चंद्रमौलि, अरविंदजी आदि माओवादी नेता। 
नक्सलवाद को शहरों में पहुँचाने और इसमें डॉक्टर इंजीनियर आदि को शहरों में पहुँचाने का सबसे बड़ा काम किया माओवादी नेता कोबाड़ घांडी ने। कोबाड घांडी मुंबई में रहता था और उनसे अनुराधा शानबाग से शादी किया था, वो भी वामपंथी - माओवादी नेता थी। वो अक्सर दण्डकारण्य में जाती थी और महीनों रहती थी। शहर से रसद पहुँचाना, दवा आदि का इंतज़ाम, गर्भवती नक्सली महिलाओं की डिलीवरी कराना, देखभाल करना आदि उसका काम था। इधर कोबाड घांडी नक्सलवाद की विचारधारा को शहरों में पहुंचाता था वो इसके लिए मुंबई से दिल्ली, कलकत्ता, कानपूर, गुजरात, आन्ध्र, केरल, उड़ीसा के दौरे करता था और माओवादी विचारों को फैलाता था। उनसे कई डॉक्टर, इंजीनियर, वक़ील आदि सफेदपोश को माओवादी समर्थक बनाया था। उसने जंगलों के माओवाद को शहरों के सरकारी दफ्तरों में घुसाया, ये लोग विचारधारा नहीं बल्कि माओवादियों के मदद के बदले पैसे पाने के लिए जुड़े थे। ये लोग भ्रष्ट नौकरशाह, नेता और सुरक्षकर्मी थे। बाद में कोबाड घांडी और अनुराधा मुंबई से नागपुर आ गए और अपनी गतिविधियों चलाते थे। 2009 में कोबाड घांडी को दक्षिणी दिल्ली से गिरफ्तार किया गया और वो जेल में है। जबकि अनुराधा 2008 में दण्डकारण्य के जंगलों में मलेरिया की बीमारी से मर गयी। कोबाड घांडी कैंब्रिज विवि में पढ़ने गया था लेकिन वहां वो माओवाद को बढ़ाने में लग गया जिससे उनकी गतिविधियों के कारण गिरफ्तार किया गया और ये भारत वापस आ गया। जंगलों से लेकर शहरों तक माओवादियों के खुफिया तंत्र और स्लीपर सेल बनाने का काम कोबाड घांडी और अनुराधा घांडी ने किया जिसका ये लोग इस्तेमाल करते हैं। घांडी दंपत्ति द्वारा बनाए फार्मूला का इस्तेमाल इनके लिए बहुत बड़ा कारगर कड़ी है।
नक्सलवाद - माओवाद आज कभी जुर्म और सम्पदा के लूट के खिलाफ खड़ी की गयी हथियारबंद लड़ाई अब बदल चुकी है। ये लड़ाई अब कोई जुर्म के खिलाफ लड़ाई नहीं है। अब ये लड़ाई दण्डकारण्य या अन्य पिछड़ों इलाकों में किसी भी तरह का विकास उन्नति को न पहुँचने देने की लड़ाई बन चुकी है। अब इस लड़ाई को शहरों में बैठे सफेदपोश नक्सलियों, विदेशियों द्वारा पोषित NGO को बचाने, तस्करी का धंधा बढ़ाने, उद्योगपतियों - ठेकेदारों से उगाही और चन्दा जुटाने की मुहीम बन चुकी है। जंगलों में रहने वाले गांव वाले इनके मोहरे हैं - ढाल है जो मर गए तो मर गए, बच गए तो बच गए। वो इस लड़ाई में न चाहते हुए भी शामिल हैं और चाह कर भी शामिल हैं – They just don’t have any choice इस नक्सलवाद - माओवाद को मिटाने के लिए जंगलों में बैठे नक्सली कमांडरों को मिटाना होगा उससे भी ज्यादे जरूरी है की इन शहरों में बैठे सफेदपोशों को मिटाया जाए। जंगलों में घुसकर कुछ नक्सली कमांडर और लड़ाकों को मार डालने से इन सफेदपोशों को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला कियोंकि ये फिर से अपना नेटवर्क खड़ा कर लेंगे और जंगलों में खुनी खेल खेलने लगेंगे।
जरूरी है कि शहरी नक्सलियों को पहले तोडा जाए, उनके सरकारी तंत्र में घुसे मददगारों को पहचान करके ख़त्म किया जाए। शिक्षण संस्थानों में पल रहे इनके स्लीपर सेल और मददगारों को एलिमिनेट करना होगा, मीडिया, मानवाधिकार और न्ययालयों में घुसे इनके मददगारों को ख़त्म करना होगा। अगर आप को यह रोचक जानकारी अच्छी लगी तो लाइक, फॉलो, शेयर, और comment, ज़रूर करैं।

ये हैं दुनिया की सबसे खतरनाक मिसाईलें।

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किसी भी देश की मज़बूत सेना उसके लिये बाहरी खतरों से सुरक्षा के लिये उसकी गारंटी होती है एक मज़बूत सेना के लिए सबसे महत्वपूर्ण होता है उसका अत्याधुनिक हथियारों से लैस होना और इस कड़ी में मिसाइलें सबसे प्रभावी शाबित होती है दुनिया में आज ऐसे भी मिसाइल्स बन चुकी हैं जिनका महज़ एक बार इस्तेमाल करने से पूरा देश नेस्तनाबूद हो सकता है

1. एल जी एम 30 माईन्युट मैन 
एल जी एम 30 माईन्युट मैन मिसाइल अमेरिका के पास मौजूद सबसे सक्षम मिसाइलों में से एक है इसकी मारक क्षमता 13000 किलोमीटर है और यह एक साथ तीन परमाणु हथियारों को ले जाने में सक्षम है, जो तीन अलग -अलग लक्ष्यों को एक साथ भेद सकते हैं अमेरिका ने इसे ट्राईडेंट सिस्टम से लैस कर इसे सबसे घातक हथियार बना दिया है यह अमेरिकी सेना में शामिल एक मात्र अंतरमहाद्वीपीय मिसाइल है

2. आर 36
आर 36 मिसाइल सोवियत रूस के ज़माने से सबसे ताकतवर मिसाइल है इस मिसाइल के जरिये रूस ने अमेरिका पर बढ़त बना ली थी यह मिसाइल एक साथ 10 से ज्यादा ठिकानों पर लक्ष्य साधने में सक्षम है इस मिसाइल को शुरुआत में अंतरिक्ष कार्यक्रमों के लिये बनाया गया था जिसे बाद में मारक हथियार में तब्दील कर दिया गया यह मिसाइल 10200 किलोमीटर से लेकर 16000 किलोमीटर तक मार करने में सक्षम है

3. डोंग फेंग 41
डोंग फेंग 41 मिसाइल परमाणु हथियारों को ढोने में सक्षम है और साथ ही में इसे किसी भी जगह से छोड़ा जा सकता है इस मिसाइल को सड़क पर खड़े ट्रक लांचर से भी छोड़ा जा सकता है इस मिसाइल की रेंज लगभग 14000 किलोमीटर है और इसकी हद में लगभग पूरी दुनिया आती है

4. अग्नि 5 
अग्नि 5 मिसाइल भारत की सबसे दूर मारक क्षमता वाली मिसाइलों में से एक है यह मिसाइल परमाणु हथियारों को ले जाने के अलावा एक साथ कई लक्ष्यों को भेदने में सक्षम है इस मिसाइल की रेंज 5000 किलोमीटर है जिसे 7000 किलोमीटर तक बढ़ाया जा सकता है। अगर आप को यह रोचक जानकारी अच्छी लगी तो लाइक, फॉलो, शेयर, और comment, ज़रूर करैं।

कुछ लोगो को क्यों आता है ज्यादा पसीना...

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गर्मियों के मौसम में पसीना आना स्वाभाविक प्रक्रिया है. सामान्य तौर पर पसीना आना हमारे सेहत के लिए जरूरी है लेकिन जिन लोगों को अत्यधिक पसीना आता है उन्हें इस पर ध्यान देना चाहिए अधिक पसीना आने का कई कारण हो सकता है जैसे कि डिहाइड्रेशन स्वेट ग्लैंड में गड़बड़ी होर्मोंल बदलाव मसालेदार खाना अधिक दवाई मौसम और मोटापा ऐसी स्थिति को हाइपरहाइड्रोसिस भी कहा जाता है.

अधिक पसीना आने का कारण
हमारे शरीर में पसीना इसलिए आता है ताकि शरीर का तापमान 98.6 डिग्री फेरनहाइट के आसपास हो शरीर में लगभग 25 लाख की ग्रंथियां यानी स्वेट ग्रंथियां पाई जाती है यह ग्रंथियां एक तरीके से हमारे शरीर में एयर कंडीशन का काम करती है और जब बहुत अधिक गर्म होता है तो इन ग्रंथियों से पसीने की बूंदे निकलना शुरू हो जाती है पसीने के हवा में सूखने से ठंडक पैदा होती है और जिससे शरीर का तापमान सामान्य हो जाता है कई बार अन्य कारण जैसे चिंता और तनाव के चलते भी त्वचा से पसीना निकलता है हार्मोन चेंजेस खासकर शरीर में करीब 30 लाख पसीने वाली ग्रंथियां सक्रिय होती है हाइपरहाइड्रोसिस से पीड़ित व्यक्तियों में सामान्य लोगो से अधिक पसीना आता है.

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यूपी-बिहार से ताल्लुक रखने वाली यह एक्ट्रेस बॉलीवुड में मचा रही हैं तहलका

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अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा से हाल ही में पूछा गया की क्या वो अमेरिका में हिंदी बोलना मिस करती है तो उन्होंने कहा की मै अपने लोगो से हिंदी में ही बात करती हूँ. और मैं यूपी और बिहार से ही तालुक रखती  हूं, मैं कही भी रहूं लेकिन मेरे अंदर से आप यूपी और बिहार नहीं निकाल सकते।

आपको ये बात जानकर बहुत हैरानी होगी की बॉलीवूड में बहुत ऐसी अभिनेत्रियां हैं जो यूपी और बिहार से तालुक रखती हैं। बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड तक अपना पहचान बना चुकी प्रियंका चोपड़ा भी बिहार से ही तालुक रखती थी उनका जन्म 1982 में जमशेदपुर ,बिहार ( अब झारखण्ड ) में हुआ था. प्रियंका के पापा अंबाला से और उनकी माँ झारखण्ड से तालुक रखती हैं।

नेहा शर्मा भी बिहार से तालुक रखती हैं. नेहा का जन्म भागलपुर में हुआ था. नेहा शर्मा की एक हाल ही में फिल्म रिलीज हुई थी, जो बॉलीवुड में कुछ खास नहीं रही। अभिनेत्री लारा दत्ता का भी जन्म गाजियाबाद, यूपी में हुआ था। पूजा बत्रा का भी जन्म यूपी के फैजाबाद में हुआ था. पूजा बत्रा मॉडल और एक्ट्रेस रह चुकी हैं। अभिनेत्री पूनम ढिल्लन का जन्म 18 अप्रैल 1962 में यूपी के कानपूर में हुआ था। बॉलीवुड में दबंगई कहे जाने वाली और बिहारी बाबू के नाम से बॉलीवुड में प्रसिद्ध शत्रुधन सिन्हा की बेटी सोनाक्षी सिन्हा भी बिहार के पटना से ही तालुक रखती हैं।

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